December 21, 2008

"मैंने - १" ("मैंने सुँघा हैं")

मैंने सुँघा हैं

धुएँ को

मुँह की बजाय

नाक से

धुआँ

जो दूसरों के फेफडों की सैर कर चुका होता हैं,

उसे मैंने अपने फेफडों की सैर करवाई हैं।


--- इस कविता को मैंने ख़ुद के लिए लिखा हैं। 10th May 2008 को लिखीं।

December 20, 2008

" आँखें "

आज मैं आपको अपनी सबसे पहली कविता (जो की मेरे पास लिखित रूप में हैं) पढ़ने के लिए देता हूँ। शायद यह उतनी अच्छी ना हो। वैसे यह मेरी पहली कविता भी नही हैं, क्यूंकि मैंने इसके पहले भी लिखा था। पर, वो अब मेरे पास नहीं हैं। सो, अब यही मेरी पहली कविता हुई।


कह दो उनसे

बंद कर दे उल्टियाँ,

उनका इनपर कोई

असर नही पड़ता।


ये तो पत्थर हैं

पिघल नहीं सकते

क्यों वक़त अपना

ख़राब करती हैं वो?


ये तो बेअसर

जिए जा रहें हैं,

क्यों ख़ुद को सुखा

रहीं हैं आँखें???


कहीं और दिल

लगा ले वो अपना,

ये अपना दिल

देने से रहें।


--- नई दिल्ली के कनाट प्लेस स्थित कॉफी होम में लिखी थीं। किसी भिखारी (याची) के लिए संदेश हैं, यह कविता। 19th Aug 2001 को लिखीं।

" माफ़ी चाहिए मुझे "

पिछले बहुत दिनों से मैं यहाँ कुछ लिख नहीं पाया। सच कहु तो दिल में बहुत तम्मना थी की लिखू। पर करता भी क्या, पढ़ाई को लेकर इतना व्यस्त था की समय ही नहीं निकाल पाया। नई जगह और नई पढ़ाई (हाँ, अब मैं SRM Univesity, चेन्नई से M. Tech. (CSE) कर रहा हूँ ।) सो सब कुछ समझ ने में वक़त लगा। और यहाँ नेट की कोई ठीक व्यवस्तता नहीं हैं। कहने को तो रोज शाम में चार बजे के बाद से हमारे कैम्पस में wi-fi on हो जाता हैं। पर वो कम्बखत इतना धीमे चलता हैं, की हम अपना मेल बॉक्स भी नहीं देख पाते हैं। और कुछ करने की बात ही दूर हैं। आज ना जाने कैसे वो ठीक चल रहा हैं। सो, मौका लगते ही मैं यहाँ कुछ लिखने बैठ गया। वैसे, आजकल मेरे पेपर चल रहें हैं।

पहले सोचा की कविता लिखू, पर लगा की क्यों ना दिल की भड़ास पहले निकली जाए। सो, निकाल ली। अब सोचता हूँ की कविता भी लिख ही लू। वरना ना जाने फिर कब यह मौका लगे।

June 25, 2008

सकारात्मक कवितायें

कुछ दोस्तों ने मुझसे कहा कि मेरी कविताओं में उन्हें नकारात्मक विचार ज्यादा दिखते हैं। "क्या मैं सकारात्मक कवितायें नही लिखता? " या यूं कहे की उन्होंने मुझे सकारात्मक कवितायें लिखने को कहा। पर, मेरे विचार से मैंने कभी भी यह नहीं सोचा कि कविता निराशावादी हैं या आशावादी। मेरे लिए कविता सिर्फ़ भाव की, विचारों की और कभी-कभी घटानायों की प्रस्तुति रही हैं। जब भी लगा की कुछ लिखूं तो बस लिख दिया ।

हो सकता हैं कि मैंने जीवन की खूबसूरती को अब तक समझा ही नहीं हो। पर, समझू भी तो कैसे कोई समझाने वाला तो हो। जो कोई भी समझाने आने वाला होता हैं , किसी - ना - किसी बहाने से उसे मुझ से छीन लिया जाता है। अब इसमें मेरी गलती तो हैं नहीं, कि मैंने उन्हें जाने दिया या खो दिया। वो कहते हैं ना कि उपरवाले के आगे किसी की नहीं चलती। मुझे नहीं पता किसी की चलती हैं या नहीं। पर, आज तक मेरी नहीं चली, और मैं चलाना भी नहीं चाहता। क्यूंकि जानता हूँ कि इसमें मेरे ही नुक्सान हैं। और, वैसे भी नुक्सान का सौदा कोई भी नहीं करना चाहता।

खैर छोड़े इन बातों को। हाँ तो मैं कह रहा था कि कविता मेरे लिए भाव कि प्रस्तुति हैं। सच में भाव ही तो हैं जो जीवन जीने की ताकत देते हैं, कम से कम मुझे तो देते ही हैं। बाकियों का मुझे पता नही। भाव अगर ना हो तो कविता बिन जल की मीन के जैसी ही तो हैं। कुछ लोग शायद इसे शब्दों का व्यवस्तित संजोग मानते हैं, तभी तो उनकी कविताओं में भाव नहीं होते। पता नहीं, मेरी कविताओं में भाव होते हैं या नहीं। पर, मेरी पुरी कोशिश रहती हैं कि मेरी कविताओं में भाव हो।

वैसे उन दोस्तों को जिनकी मुझ से शिकायत थी, उनको मैं सिर्फ़ इतना ही कह सकता हूँ की मैं कोशिश करूँगा की उनकी वाली सकारात्मक कवितायें भी लिख सकूँ।

May 1, 2008

" धर्मान्तरण "

कल तक उमर था
नाम मेरा
आज से उमेश है

चीख पड़े
धर्म के नुमायिंदे
वो कहते हैं -
मैं उमर नहीं
वो कहते हैं -
मैं उमेश नहीं
उनका रहीम मेरा नहीं
उनका राम मेरा नहीं
अब ना हाथ उठाऊ मैं
अब ना हाथ जोडुँ मैं

मुझसे मेरा विश्वास छीनकर
जीने की चाह छीनकर
वो कहते हैं -
गलती की मैंने
बिना पूछे किया
धर्मान्तरण

पूछता तो
मुझे समझाते
रहीम भक्त के घटने पर
भव्य आयोजन करते
राम भक्त के बढ़ने पर

क्या मेरा विश्वास कुछ नहीं
क्या मेरी ईच्छा कुछ नहीं
तो फिर क्यों
खर्च करते हैं लाखों
धर्मान्तरण के नाम पर

--- पिछले वर्ष भोपाल के उमर ने सिन्धी लड़की से विवाह करने के लिए हिंदू धर्म अपना लिया था। सो, काफी बवाल हुआ था। पता नही अब वह दोनों कैसे हैं ? मैंने बस उन्हें याद करने के लिए यह कविता 6th May 2007 को लिखीं। इसी कविता को मैंने "विस्फोट" पर भी लिखा हैं।

April 24, 2008

हमेशा सकारात्मक सोचे...

मेरे एक मित्र हैं, तेजप्रताप जी। उन्होंने मुझे एक इ-पत्र भेजा। पत्र, जिसे भेजने वाले ने बहुत खूबसूरती-से तैयार किया हैं। (यहाँ भेजने वाले से मेरा तात्पर्य सबसे पहले प्रेषक से हैं। क्योंकि उन्हें भी शायद किसी और ने ही भेजा हैं।) उस पत्र में हमेशा सकारात्मक सोचने की बात कुछ चित्रों के माध्यम से बड़ी खूबसूरती के साथ कही गई हैं। मेरा मन हुआ कि मैं उसे आप सभी के साथ बाटू। सो, आप लोगों के लिए मैं उसे यहाँ पेश कर रहा हूँ।

अगर आप सोचते हैं कि सबसे ज्यादा तनाव आपको ही हैं, तो इनके बारे में आपकी क्या राय हैं?
अगर आप सोचते हैं कि आपका काम सबसे कठिन हैं, तो इनके बारे में आपकी क्या राय हैं?

अगर आप सोचते हैं कि आपकी आय कम हैं, तो इनके बारे में आपकी क्या राय हैं? अगर आप सोचते हैं कि आपके बहुत ज्यादा दोस्त नहीं हैं, तो ख़ुद से पूछे कि क्या आपके पास एक अच्छा दोस्त नहीं हैं? अगर आप सोचते हैं कि आपकी पढ़ाई बोझिल और कठिन हैं, तो इसके बारे में आपकी क्या राय हैं?जब कभी भी लगे कि जीवन से पीछा छुडा लूँ, तो इनके बारे में सोच के देखें। अगर आप सोचते हैं कि आपने जीवन को सिर्फ़ झेला हैं, तो इनके बारे में आपकी क्या राय हैं? अगर आपको आपने देश की यातायात व्यवस्था से शिकायत हैं, तो इनके बारे में आपकी क्या राय हैं? अगर आप सोचते हैं कि आपका समाज आपके प्रति पक्षपातपूर्ण हैं तो इनके बारे में आपकी क्या राय हैं?






इसीलिए दोस्तों हमेशा सकारात्मक सोचे।

April 23, 2008

" मेरे सर पे छत हैं "

हडबडा कर
उठ बैठता हूँ
रातों में
चाँद देखने के लिए
पर
आजतक नहीं दिखा
क्योंकि
मेरे सर पे छत हैं
आसमाँ नहीं ...

--- जिनके सर पे छत नहीं उनके दुःख - दर्द को छत वाले यानि मैं क्या जानूँ । 17th Nov. 2003 को लिखीं ।

April 18, 2008

" दूर और पास "

सामने बैठे हो
पर ऐसा लगता है
जैसे जानता ही नहीं तुम्हें
पहचानता ही नहीं तुम्हें
दूर कहीं दूर हो तुम मुझसे
और मैं
पास कहीं पास हूँ तुम्हारे

--- 12th May 2005 को लिखीं ।

April 15, 2008

" जिन्दगी या मौत "

जिंदगी ...
क्या हैं ? क्यों हैं? कैसी हैं?
क्या हैं , यह तो मैं नहीं जानता ।
क्यों हैं , यह तो कोई नहीं जानता ।
और रही बात कैसी हैं ,
यह तो सभी जानते हैं ।

यही मौत है ।
क्यों कि,
जिंदगी और मौत
दोनों ही शुरुआत हैं ।
जिंदगी मायावी दुनियाँ की
तो मौत आलौकिक दुनियाँ की ।

कभी - कभी सोचता हूँ
जिंदगी मौत की जन्मदात्री हैं
या
मौत जिंदगी की जन्मदात्री हैं ।
जो भी हो,
पर एक बात तो तय हैं -
दोनों ही इन्तजार बहुत करतीं हैं ।
जिंदगी नौ माह का
तो मौत ...
पूछिये ही मत ...

--- 4th Dec. 1999 को लिखीं ।

April 12, 2008

" रकीब या दिलबर "

तेरी झील-सी आँखों में
उतरा हुआ चाँद
मुझसे पूछता है की
तू मेरा रकीब तो नहीं ?

अब तू ही बता
मैं
उस चाँदनी छोडे चाँद को क्या कहूँ
रकीब या दिलबर ?

--- 22th Sep. 2007 को लिखीं । " किसी " ने कहा कि बहुत-सी कवितायें लिखीं हैं तुमने । पर , मुझ पे कोई कविता नही लिखीं । आज लिख दो । वो कहते हैं ना " जब कोई प्यारा प्यार से कहे तो उसकी बात नहीं टालते " । सो, मैंने भी नहीं टाली

इसे कहीं देखा हैं क्या, आपने?

बहुत दिनों पहले, पता नहीं क्यों, दिल ने कहा की कुर्ता पहन लो । वैसे पहले कभी पहना भी नहीं था, सो पिछली गर्मी में जम कर कुर्ता पहना । जब फोटो ले कर देखा तो लगा की नेता बनने लायक हो गया हूँ । आप की क्या राय हैं, मुझे जरुर बता दीजियेगा ।