August 29, 2009

दूसरा जनम

ना जाने क्यों पिछले कुछ दिनों से ज़िन्दगी बोझ सी लगने लगी थी| सोचा क्यों ना इस बोझ को कम ही कर दिया जाए| सो मरने की सोची| सोची क्या यूँ कहिये कोशिश की| पर कम्बखत मौत ने भी साथ ना दिया| जानते हैं मुझ से कहती हैं, "तुझे तो अभी बहुत से काम करने हैं, और वैसे भी तेरी जरुरत उपरवाले को नही हैं| सो कुछ दिन और झेल ले इस ज़िन्दगी को| फिर ख़ुद आ कर तुझे ले जाऊगी| " तक़रीबन दो दिन सोचने के बाद मैंने भी निर्णय ले ही लिया| और वापस ज़िन्दगी से दोस्ती कर के लौट आया|

पर अब सोच रहा हूँ, की क्या करू, कहाँ से दूसरी शुरुआत करू| अब तक पिछली यादो ने ही पीछा नही छोड़ा हैं| ढूंड रहा हूँ की कैसे पीछा छुटाऊ| और कभी-कभी तो सोचता हूँ कि छुटाऊ ही क्यों? पता नहीं पिछले कुछ दिनों से क्या हो रहा है, मेरे साथ|

खैर छोडिये इस सब बातों को| अब आया हूँ तो कुछ न कुछ तो जरुर ही करुगा| वैसे मैं अपने दोस्तों और उनसे पहले उस उपरवाले को धन्यवाद करुगा, जिन्हों ने मुझे दूसरा जनम दिया हैं|

August 22, 2009

हमारी नज़रों में


कभी तो वक्त की अहमियत को समझा करो,
अपनी आवाज़ सुनाकर हाले दिल बयान करो,
हम तो कबसे आँखें बिछाए खड़े हैं,
बस रहते हैं हम आप ही के ख्यालों में,
कभी ख़ुद को महसूस करो हमारी नज़रों में !

August 19, 2009

गोल्डन लिज़र्ड टेम्पल

बचपन में एक बार मेरे शरीर के किसी अंग पर छिपकली गिर गई| जानते हैं क्या हुआ| माँ ने कहा "यह अपशगुन होता हैं| जा कर नहा के आ"| और मुझे उस कपकपाती ठंढ में नहाना पड़ा| गुस्सा तो बहुत आया उस छिपकली, पर मैं कर भी क्या सकता था| यह बात मुझे आज भी याद हैं|

अभी हाल ही में मैं और मेरे दोस्त कांचीपुरम (तमिलनाडु) गए थे| ये हमारे कॉलेज से ज्यादा दूर नही हैं| बल्कि हमारा कॉलेज ही चेन्नई में ना आ कर इसी जिले में आता हैं| वहां बहुत से मन्दिर हैं जिनका अपना - अपना महत्व हैं| इन सब में एक खास तरह का मन्दिर हैं, जिसे गोल्डन लिज़र्ड टेम्पल कहते हैं| नाम से ही लगता हैं ना की यह सोने की छिपकलियाँ का मन्दिर होगा| मैं भी इसी भ्रम में गया था| पर ऐसा कुछ भी नही हैं| यह एक बहुत बड़ा और प्राचीन मन्दिर हैं| और यहाँ छिपकली के नाम पर सिर्फ़ दो ही छिपकलियाँ हैं - एक चांदी और एक पीतल की| इन दोनों के साथ ही पीतल के बने चाँद - सूरज भी हैं| यह सब एक साथ एक लकड़ी के पट्टे पर लगे हुए हैं| और वो पट्टा छत से लगा हुआ हैं|
जैसा की आप यहाँ देख हैं| कहते हैं की अगर आपको जीवन में कभी भी छिपकली ने छुआ हैं, तो इन दोनों छिपकलियों को छूने उसका अपशगुन कट जाता हैं| अबकी बार जब घर जाउगां तो माँ से कहूगा की मैंने तो आपने अपशगुन कट लिए हैं, माँ| वैसे मैं आप से पूछता हूँ, आप कब आ रहे हैं अपने अपशगुन दूर करने के लिए कांचीपुरम| बहुत ही खुबसूरत शहर हैं| और मन्दिर तो पुछियें ही नहीं, ना जाने कितने हैं| और सब एक से बढ़कर एक|

August 15, 2009

ढाई आखर का प्यार...

आज बहुत दिनों के बाद मन में उबलते विचारों को कीपैड से मेल करा पा रहा हूँ। ये कहीं ना कहीं मेरे दिल में खुलबुलाते संवेदनायो की ही परछाई हैं: -

"प्यार को कभी भी किया नहीं जा सकता। प्यार तो अपने आप हो जाता है। दिन और रात... धरती और आसमान, एक दूसरे के बिना सब अधूरे हैं। सन -सन करती हवाएं, सुन्दर नजारे, फूलों की खुशबू ... सभी में छिपा होता है प्यार... कुछ तो प्यार में हारकर भी जीत जाते हैं, तो कुछ जीतकर भी अपना प्यार हार जाते हैं। प्यार एक ऐसा नशा है जिसमें जो डूबता है वो ही पार होता है। प्यार पर किसी का वश नहीं होता.... अगर आप भी प्यार महसूस करना चाहते हैं तो डूबिये किसी के प्यार में ... दुनिया की सबसे बड़ी नेमत है ढाई आखर का प्यार... जब आप भी किसी को चाहने लगते हैं तो उसके दूर होने पर भी आपको उसके नजदीक होने का अहसास होने लगता है , हर चेहरे में आप उसका चेहरा ढूंढने की असफल कोशिश करते हैं, कोई पल ऐसा न गुजरता होगा जब उसका नाम आपके होठों पर न रहता हो... यही तो होता है प्यार... सुन्दर, सुखद , निश्छल और पवित्र अहसास। पूरी दुनिया के सुख इस प्रेम में समाए हुए हैं। यह शब्द छोटा होते हुए भी सभी शब्दों में बड़ा महसूस होता है। केवल इतना सा अहसास मात्र ही आपको तरंगित कर देगा कि मैं उससे प्यार करता या करती हूं ...... "

पढ़ने में कुछ अजीब सी बातें लग रही हैं, ना| शायद आप सोचे की ये किस तरह की बातें कर रहा हूँ, मैं| कहते हैं ना, "अपने किसी खास को खोने का एहसास आपको छन भर के लिए ही सही पर पागल कर देता हैं"| शायद मेरे साथ भी यही हुआ| तभी तो पागलों जैसी बातें कर रहा हूँ| हाँ ! प्यार की बातें करने वाले पागल ही तो होते हैं| ऐसा आप ही लोगों ने कहा हैं| पर मुझे नहीं लगता की मेरे द्वारा उपर लिखी बातों से किसी को भी कोई आपत्ति होगी| और जहाँ तक मेरा मानना हैं, आप सब भी इसे सही ही मानते होगें| वैसे मेरे या आपके मानने या ना मानने से क्या होता हैं, सत्य तो सत्य ही रहेगा|