June 25, 2008

सकारात्मक कवितायें

कुछ दोस्तों ने मुझसे कहा कि मेरी कविताओं में उन्हें नकारात्मक विचार ज्यादा दिखते हैं। "क्या मैं सकारात्मक कवितायें नही लिखता? " या यूं कहे की उन्होंने मुझे सकारात्मक कवितायें लिखने को कहा। पर, मेरे विचार से मैंने कभी भी यह नहीं सोचा कि कविता निराशावादी हैं या आशावादी। मेरे लिए कविता सिर्फ़ भाव की, विचारों की और कभी-कभी घटानायों की प्रस्तुति रही हैं। जब भी लगा की कुछ लिखूं तो बस लिख दिया ।

हो सकता हैं कि मैंने जीवन की खूबसूरती को अब तक समझा ही नहीं हो। पर, समझू भी तो कैसे कोई समझाने वाला तो हो। जो कोई भी समझाने आने वाला होता हैं , किसी - ना - किसी बहाने से उसे मुझ से छीन लिया जाता है। अब इसमें मेरी गलती तो हैं नहीं, कि मैंने उन्हें जाने दिया या खो दिया। वो कहते हैं ना कि उपरवाले के आगे किसी की नहीं चलती। मुझे नहीं पता किसी की चलती हैं या नहीं। पर, आज तक मेरी नहीं चली, और मैं चलाना भी नहीं चाहता। क्यूंकि जानता हूँ कि इसमें मेरे ही नुक्सान हैं। और, वैसे भी नुक्सान का सौदा कोई भी नहीं करना चाहता।

खैर छोड़े इन बातों को। हाँ तो मैं कह रहा था कि कविता मेरे लिए भाव कि प्रस्तुति हैं। सच में भाव ही तो हैं जो जीवन जीने की ताकत देते हैं, कम से कम मुझे तो देते ही हैं। बाकियों का मुझे पता नही। भाव अगर ना हो तो कविता बिन जल की मीन के जैसी ही तो हैं। कुछ लोग शायद इसे शब्दों का व्यवस्तित संजोग मानते हैं, तभी तो उनकी कविताओं में भाव नहीं होते। पता नहीं, मेरी कविताओं में भाव होते हैं या नहीं। पर, मेरी पुरी कोशिश रहती हैं कि मेरी कविताओं में भाव हो।

वैसे उन दोस्तों को जिनकी मुझ से शिकायत थी, उनको मैं सिर्फ़ इतना ही कह सकता हूँ की मैं कोशिश करूँगा की उनकी वाली सकारात्मक कवितायें भी लिख सकूँ।