कल तक उमर था
नाम मेरा
आज से उमेश है
चीख पड़े
धर्म के नुमायिंदे
वो कहते हैं -
मैं उमर नहीं
वो कहते हैं -
मैं उमेश नहीं
उनका रहीम मेरा नहीं
उनका राम मेरा नहीं
अब ना हाथ उठाऊ मैं
अब ना हाथ जोडुँ मैं
मुझसे मेरा विश्वास छीनकर
जीने की चाह छीनकर
वो कहते हैं -
गलती की मैंने
बिना पूछे किया
धर्मान्तरण
पूछता तो
मुझे समझाते
रहीम भक्त के घटने पर
भव्य आयोजन करते
राम भक्त के बढ़ने पर
क्या मेरा विश्वास कुछ नहीं
क्या मेरी ईच्छा कुछ नहीं
तो फिर क्यों
खर्च करते हैं लाखों
धर्मान्तरण के नाम पर
--- पिछले वर्ष भोपाल के उमर ने सिन्धी लड़की से विवाह करने के लिए हिंदू धर्म अपना लिया था। सो, काफी बवाल हुआ था। पता नही अब वह दोनों कैसे हैं ? मैंने बस उन्हें याद करने के लिए यह कविता 6th May 2007 को लिखीं। इसी कविता को मैंने "विस्फोट" पर भी लिखा हैं।
May 1, 2008
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