March 29, 2010

फ़िलहाल एम. टेक. के फ़ाइनल प्रोजेक्ट को लेकर कुछ ज्यादा ही वयस्त हूँ| इसी वजह से यहाँ कुछ खास लिख नहीं पा रहा हूँ|

March 8, 2010

"माँ !!!"

सिमटा हैं जिसमें सारा संसार,
करती हैं जो सबके सपनों को साकार,
जुडा हैं जिससे हर दिल का तार,
समाया हैं जिसमें मेरा आकार,

माँ ! तुने ईश्वर को जना हैं,
संसार तेरे ही दम से बना हैं,
तू मेरी पूजा हैं, मन्नत हैं मेरी,
तेरे ही कदमों में जन्नत हैं मेरी,

माँ !!!
वो माँ ! तुझे सादर प्रणाम |

--- मेरी खुद की कविता, जिसे मैंने अपनी माँ के जन्मदिन पर उनके लिए लिखी थी| सोचा, आज विश्व महिला दिवस पर यही कविता लिखी जाये, ब्लॉग पर |

March 1, 2010

लेखनी साथ नहीं दे रही हैं पिछले कुछ दिनों से| दिल में ना जाने कितनी संवेदनाये उबल रही हैं| पर मेरे पास रखे तुम्हारे सारे ख़त खत्म हो गए हैं जिनके पिछले पन्ने पे मैं लिखा करता था.... और तो और तुम्हारे दिए लेखनी की स्याही भी कुछ जम सी गयी हैं| मैंने तुमसे कहा था, "ना दो मुझे ये लेखनी, ना जाने कब मैं लिखना भूल जाऊ"| पर तुम हो की माने ही नहीं| दे गए मुझे अपनी लेखनी| अब बताओ कहाँ लिखू और लिखू भी तो कैसे लिखू, जब लेखनी ही जम गयी हैं|
कभी सोचा भी नहीं था कि ज़िन्दगी में ये भी मोड़ आयेगा| जब ये लम्बी, तन्हा ज़िन्दगी तुम्हारे बगैर मुझे यूँ काटनी पड़ जाएगी| तुम ने नहीं जाने क्या सोचा होगा| नहीं जाने मुझे कितना सहनशील समझा होगा| पर सच कहू तो अब और सहने की हिम्मत नहीं रह गयी हैं|