January 10, 2011

आज के बाद मैं यहाँ मतलब इस ब्लॉग पे कुछ भी नहीं लिखुगा | दिल कि बातें दिल में रखो तो ज्यादा अच्छा हैं | ऐसा किसी ने आज कहा तो सोचता हूँ जब अब तक उसकी किसी बात को नहीं काटा हैं तो इस बात को कैसे काट दूँ | वैसे उसे अब तक ये नहीं लगा कि मैं उसकी बातों को मानता हूँ | सो हो सकता हैं कि वो अब इसे भी ना माने कि मैंने जीना छोड़ दिया हैं, क्योंकि लेखिनी ही तो हैं जिसने मुझे जिन्दा रखें हुए था | विचारों के बिना इंसान सिर्फ हाठ-मांस का पुतला ही तो हैं |
माफ़ी मांगता हूँ आप सबसे जो आज तक यहाँ मेरी लेखिनी को पढ़ने आते थे और जिन्होंने अब तक के सफ़र मेरा साथ दिया और मुझे जीने (लिखने) का होसंला दिया |