April 24, 2008

हमेशा सकारात्मक सोचे...

मेरे एक मित्र हैं, तेजप्रताप जी। उन्होंने मुझे एक इ-पत्र भेजा। पत्र, जिसे भेजने वाले ने बहुत खूबसूरती-से तैयार किया हैं। (यहाँ भेजने वाले से मेरा तात्पर्य सबसे पहले प्रेषक से हैं। क्योंकि उन्हें भी शायद किसी और ने ही भेजा हैं।) उस पत्र में हमेशा सकारात्मक सोचने की बात कुछ चित्रों के माध्यम से बड़ी खूबसूरती के साथ कही गई हैं। मेरा मन हुआ कि मैं उसे आप सभी के साथ बाटू। सो, आप लोगों के लिए मैं उसे यहाँ पेश कर रहा हूँ।

अगर आप सोचते हैं कि सबसे ज्यादा तनाव आपको ही हैं, तो इनके बारे में आपकी क्या राय हैं?
अगर आप सोचते हैं कि आपका काम सबसे कठिन हैं, तो इनके बारे में आपकी क्या राय हैं?

अगर आप सोचते हैं कि आपकी आय कम हैं, तो इनके बारे में आपकी क्या राय हैं? अगर आप सोचते हैं कि आपके बहुत ज्यादा दोस्त नहीं हैं, तो ख़ुद से पूछे कि क्या आपके पास एक अच्छा दोस्त नहीं हैं? अगर आप सोचते हैं कि आपकी पढ़ाई बोझिल और कठिन हैं, तो इसके बारे में आपकी क्या राय हैं?जब कभी भी लगे कि जीवन से पीछा छुडा लूँ, तो इनके बारे में सोच के देखें। अगर आप सोचते हैं कि आपने जीवन को सिर्फ़ झेला हैं, तो इनके बारे में आपकी क्या राय हैं? अगर आपको आपने देश की यातायात व्यवस्था से शिकायत हैं, तो इनके बारे में आपकी क्या राय हैं? अगर आप सोचते हैं कि आपका समाज आपके प्रति पक्षपातपूर्ण हैं तो इनके बारे में आपकी क्या राय हैं?






इसीलिए दोस्तों हमेशा सकारात्मक सोचे।

April 23, 2008

" मेरे सर पे छत हैं "

हडबडा कर
उठ बैठता हूँ
रातों में
चाँद देखने के लिए
पर
आजतक नहीं दिखा
क्योंकि
मेरे सर पे छत हैं
आसमाँ नहीं ...

--- जिनके सर पे छत नहीं उनके दुःख - दर्द को छत वाले यानि मैं क्या जानूँ । 17th Nov. 2003 को लिखीं ।

April 18, 2008

" दूर और पास "

सामने बैठे हो
पर ऐसा लगता है
जैसे जानता ही नहीं तुम्हें
पहचानता ही नहीं तुम्हें
दूर कहीं दूर हो तुम मुझसे
और मैं
पास कहीं पास हूँ तुम्हारे

--- 12th May 2005 को लिखीं ।

April 15, 2008

" जिन्दगी या मौत "

जिंदगी ...
क्या हैं ? क्यों हैं? कैसी हैं?
क्या हैं , यह तो मैं नहीं जानता ।
क्यों हैं , यह तो कोई नहीं जानता ।
और रही बात कैसी हैं ,
यह तो सभी जानते हैं ।

यही मौत है ।
क्यों कि,
जिंदगी और मौत
दोनों ही शुरुआत हैं ।
जिंदगी मायावी दुनियाँ की
तो मौत आलौकिक दुनियाँ की ।

कभी - कभी सोचता हूँ
जिंदगी मौत की जन्मदात्री हैं
या
मौत जिंदगी की जन्मदात्री हैं ।
जो भी हो,
पर एक बात तो तय हैं -
दोनों ही इन्तजार बहुत करतीं हैं ।
जिंदगी नौ माह का
तो मौत ...
पूछिये ही मत ...

--- 4th Dec. 1999 को लिखीं ।

April 12, 2008

" रकीब या दिलबर "

तेरी झील-सी आँखों में
उतरा हुआ चाँद
मुझसे पूछता है की
तू मेरा रकीब तो नहीं ?

अब तू ही बता
मैं
उस चाँदनी छोडे चाँद को क्या कहूँ
रकीब या दिलबर ?

--- 22th Sep. 2007 को लिखीं । " किसी " ने कहा कि बहुत-सी कवितायें लिखीं हैं तुमने । पर , मुझ पे कोई कविता नही लिखीं । आज लिख दो । वो कहते हैं ना " जब कोई प्यारा प्यार से कहे तो उसकी बात नहीं टालते " । सो, मैंने भी नहीं टाली

इसे कहीं देखा हैं क्या, आपने?

बहुत दिनों पहले, पता नहीं क्यों, दिल ने कहा की कुर्ता पहन लो । वैसे पहले कभी पहना भी नहीं था, सो पिछली गर्मी में जम कर कुर्ता पहना । जब फोटो ले कर देखा तो लगा की नेता बनने लायक हो गया हूँ । आप की क्या राय हैं, मुझे जरुर बता दीजियेगा ।