March 8, 2010

"माँ !!!"

सिमटा हैं जिसमें सारा संसार,
करती हैं जो सबके सपनों को साकार,
जुडा हैं जिससे हर दिल का तार,
समाया हैं जिसमें मेरा आकार,

माँ ! तुने ईश्वर को जना हैं,
संसार तेरे ही दम से बना हैं,
तू मेरी पूजा हैं, मन्नत हैं मेरी,
तेरे ही कदमों में जन्नत हैं मेरी,

माँ !!!
वो माँ ! तुझे सादर प्रणाम |

--- मेरी खुद की कविता, जिसे मैंने अपनी माँ के जन्मदिन पर उनके लिए लिखी थी| सोचा, आज विश्व महिला दिवस पर यही कविता लिखी जाये, ब्लॉग पर |

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