May 1, 2010

"हैं कोई दवा"

मरने से डरने लगा हूँ, क्यूँकि कभी सुना था कि जिसकी कोई भी दिली तमन्ना अधूरी रह जाती हैं तो मरने के बाद उसकी आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती हैं और मेरी तो ना जाने कितनी ही अभी बाकी हैं| और मैं ये भी नहीं चाहता कि मरने के बाद तुम्हे परेशान करूँ| जीते जीते ना जाने तुमे कितना परेशान किया हैं| ऐसा तुम सोचते हो| मैं नहीं| वैसे भी मैंने तुमसे प्यार किया हैं, तुम्हे कैसे परेशान कर सकता हूँ| ये बात और हैं कि तुम्हे अब मेरा प्यार परेशानी लगने लगा हैं|

कल तक मेरे जिस प्यार की सब कसमें लिया करते थे| आज उसी प्यार से सब सबक ले रहे हैं| मुझे ग़म इस बात का नहीं कि तुमने मेरे प्यार की कद्र ना समझी| अब तो ग़म सिर्फ इस बात का हैं कि मेरे प्यार की वजह से कुछ लोगों का प्यार से विश्वास उठ गया| ग़म तो इस बात का हैं कि मैं उन्हें समझा भी नहीं सकता| क्यूंकि जिसके खुद के गिराबां में दाग हो, वो बोले भी तो किस मुहं से| ग़म तो इस बात का हैं कि मैं उनसे कैसे निगाहें मिला पाउगा, जिनसे मैं तुम्हे पाने के लिए लड़ पड़ा था| अब जब वो मुझ से मेरे प्यार का हिसाब मांग रहे हैं, तो मैं आधे बलि चढ़े मेमने सा गर्दन निचे गिराए, उनसे ज़िन्दगी की भीख मांग रहा हूँ| हूँ....|

हैं कोई दवा इन सब ग़मों का, आपके पास डॉ. साहिबा|

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