August 15, 2009

ढाई आखर का प्यार...

आज बहुत दिनों के बाद मन में उबलते विचारों को कीपैड से मेल करा पा रहा हूँ। ये कहीं ना कहीं मेरे दिल में खुलबुलाते संवेदनायो की ही परछाई हैं: -

"प्यार को कभी भी किया नहीं जा सकता। प्यार तो अपने आप हो जाता है। दिन और रात... धरती और आसमान, एक दूसरे के बिना सब अधूरे हैं। सन -सन करती हवाएं, सुन्दर नजारे, फूलों की खुशबू ... सभी में छिपा होता है प्यार... कुछ तो प्यार में हारकर भी जीत जाते हैं, तो कुछ जीतकर भी अपना प्यार हार जाते हैं। प्यार एक ऐसा नशा है जिसमें जो डूबता है वो ही पार होता है। प्यार पर किसी का वश नहीं होता.... अगर आप भी प्यार महसूस करना चाहते हैं तो डूबिये किसी के प्यार में ... दुनिया की सबसे बड़ी नेमत है ढाई आखर का प्यार... जब आप भी किसी को चाहने लगते हैं तो उसके दूर होने पर भी आपको उसके नजदीक होने का अहसास होने लगता है , हर चेहरे में आप उसका चेहरा ढूंढने की असफल कोशिश करते हैं, कोई पल ऐसा न गुजरता होगा जब उसका नाम आपके होठों पर न रहता हो... यही तो होता है प्यार... सुन्दर, सुखद , निश्छल और पवित्र अहसास। पूरी दुनिया के सुख इस प्रेम में समाए हुए हैं। यह शब्द छोटा होते हुए भी सभी शब्दों में बड़ा महसूस होता है। केवल इतना सा अहसास मात्र ही आपको तरंगित कर देगा कि मैं उससे प्यार करता या करती हूं ...... "

पढ़ने में कुछ अजीब सी बातें लग रही हैं, ना| शायद आप सोचे की ये किस तरह की बातें कर रहा हूँ, मैं| कहते हैं ना, "अपने किसी खास को खोने का एहसास आपको छन भर के लिए ही सही पर पागल कर देता हैं"| शायद मेरे साथ भी यही हुआ| तभी तो पागलों जैसी बातें कर रहा हूँ| हाँ ! प्यार की बातें करने वाले पागल ही तो होते हैं| ऐसा आप ही लोगों ने कहा हैं| पर मुझे नहीं लगता की मेरे द्वारा उपर लिखी बातों से किसी को भी कोई आपत्ति होगी| और जहाँ तक मेरा मानना हैं, आप सब भी इसे सही ही मानते होगें| वैसे मेरे या आपके मानने या ना मानने से क्या होता हैं, सत्य तो सत्य ही रहेगा|

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