August 19, 2009

गोल्डन लिज़र्ड टेम्पल

बचपन में एक बार मेरे शरीर के किसी अंग पर छिपकली गिर गई| जानते हैं क्या हुआ| माँ ने कहा "यह अपशगुन होता हैं| जा कर नहा के आ"| और मुझे उस कपकपाती ठंढ में नहाना पड़ा| गुस्सा तो बहुत आया उस छिपकली, पर मैं कर भी क्या सकता था| यह बात मुझे आज भी याद हैं|

अभी हाल ही में मैं और मेरे दोस्त कांचीपुरम (तमिलनाडु) गए थे| ये हमारे कॉलेज से ज्यादा दूर नही हैं| बल्कि हमारा कॉलेज ही चेन्नई में ना आ कर इसी जिले में आता हैं| वहां बहुत से मन्दिर हैं जिनका अपना - अपना महत्व हैं| इन सब में एक खास तरह का मन्दिर हैं, जिसे गोल्डन लिज़र्ड टेम्पल कहते हैं| नाम से ही लगता हैं ना की यह सोने की छिपकलियाँ का मन्दिर होगा| मैं भी इसी भ्रम में गया था| पर ऐसा कुछ भी नही हैं| यह एक बहुत बड़ा और प्राचीन मन्दिर हैं| और यहाँ छिपकली के नाम पर सिर्फ़ दो ही छिपकलियाँ हैं - एक चांदी और एक पीतल की| इन दोनों के साथ ही पीतल के बने चाँद - सूरज भी हैं| यह सब एक साथ एक लकड़ी के पट्टे पर लगे हुए हैं| और वो पट्टा छत से लगा हुआ हैं|
जैसा की आप यहाँ देख हैं| कहते हैं की अगर आपको जीवन में कभी भी छिपकली ने छुआ हैं, तो इन दोनों छिपकलियों को छूने उसका अपशगुन कट जाता हैं| अबकी बार जब घर जाउगां तो माँ से कहूगा की मैंने तो आपने अपशगुन कट लिए हैं, माँ| वैसे मैं आप से पूछता हूँ, आप कब आ रहे हैं अपने अपशगुन दूर करने के लिए कांचीपुरम| बहुत ही खुबसूरत शहर हैं| और मन्दिर तो पुछियें ही नहीं, ना जाने कितने हैं| और सब एक से बढ़कर एक|

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